जो भी ग़म गुसार बन के आता है
िदल के ज़ख्म को और गह्रा कर जाता है
नग्मा-ऐ-इश्क धुंधला पड़ जाता है
हर ख्वाब अधूरा रह जाता है
जीने की तमन्ना मैं 'ंपिंॅडत' जेये जाता है
उस कािफर का खून-ऐ-जीगर क्यों नहीं पाता है
तगाफुल करके उसका क्या जाता है
बस ग़म-ऐ-इश्क और बडा जाता है
नफज़ दर नफज़ जूनून उबल जाता है
वहशत की हद लांघना चाहता है
ज़मीर पर िफर एक खेल खेल जाता है
उसका नग्मा-ऐ-इश्क याद करा जाता है
िदल के ज़ख्म को और गह्रा कर जाता है
नग्मा-ऐ-इश्क धुंधला पड़ जाता है
हर ख्वाब अधूरा रह जाता है
जीने की तमन्ना मैं 'ंपिंॅडत' जेये जाता है
उस कािफर का खून-ऐ-जीगर क्यों नहीं पाता है
तगाफुल करके उसका क्या जाता है
बस ग़म-ऐ-इश्क और बडा जाता है
नफज़ दर नफज़ जूनून उबल जाता है
वहशत की हद लांघना चाहता है
ज़मीर पर िफर एक खेल खेल जाता है
उसका नग्मा-ऐ-इश्क याद करा जाता है
Comments
वहशत की हद लांघना चाहता है
ज़मीर पर िफर एक खेल खेल जाता है
उसका नग्मा-ऐ-इश्क याद करा जाता है
--------- These lines won me and my heart. Outstanding bro. Please do write more....